Tuesday, May 6, 2014

Short Story - 09. 'उधार ।'


 Short Story - 09. 'उधार ।'

" मेरी पुरी ज़िंदगी में, इतना भ्रष्ट इंस्पेक्टर, मैंने कभी नहीं देखा..! अपने मित्र की हत्या करने वाले आरोपी को बचाने, उसके पिता के साथ अंदर दस पेटी (लाख) में सौदेबाजी हो रही है ?" पुलिस इंस्पेक्टर साहब की केबिन के बाहर दो पुलिस वाले एक दूसरे के साथ फुसफुसाहट कर रहे थे कि अचानक..!
 
पत्थर सी शुष्क आँखों के साथ, एक वृद्ध, ग़मगीन आदमी, पुलिस वालों के पास आकर बोला," मुझे साहब से मिलना है ।"
 
एक पुलिस वाले ने कहा,"साहब मीटिंग में हैं, क्या काम है, मुझे बताओ ।"
 
"साहब, चौराहे पर जिसकी हत्या हुई है, उसका मैं बाप हूँ, मेरी दवाई के लिए मेरे बेटे ने, अपने इस मित्र से,उधार रुपये लिए थे पर वह चुका न सका । बेटे की आखिरी इच्छा थी, मैं  ये उधार चुका दूँ ..!  कृपा कर के, आप उस आरोपी युवक को, ये दो सौ रुपये दे देंगे?"
 
एक दुःखी, वृद्ध पिता की बात सुनकर तुरंत, सारे पुलिस स्टेशन में  गहरा सन्नाटा छा गया मानो, मृतक के सम्मान में सभी ने दो मिनट का मौन धारण किया हो..!
 
मार्कण्ड दवे । दिनांक- ०३-०५-२०१४.


2 comments:

  1. बहुत ही भावुक कमाल का अंत दिखाया है कहानी का आपने.

    आभार दवे जी.

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