Wednesday, August 22, 2012

बेक़रार दिल । (गीत)




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बेक़रार  दिल । (गीत) 




दर - दर   की  ठोकरें  खाने  को,  दिल  बेक़रार   है ।


किसीने  कह  दिया  उसे, उनको  हम  से  प्यार   है ..!



अंतरा-१.



आगाह   किया   था  उसे,   कई   जहाँदीदा   यारों   ने ।


न  कश्ती, न  पतवार,फिर क्यूँ, तरंत का तलबगार  है ?


दर - दर   की   ठोकरें   खाने   को,  दिल   बेक़रार   है ।



(आगाह=सूचित; जहाँदीदा= अनुभवी; तरंत= समंदर; तलबगार= इच्छुक । )



अंतरा-२.



न आग़ाज़  का   पता  है उसे,  न  अन्जाम  का   पता..!


तब  भी,  कुछ  कर  गुज़रने  की  सनक  धुँआँधार   है ।


दर - दर   की    ठोकरें   खाने   को,  दिल   बेक़रार   है ।



(आग़ाज़= आरंभ; अन्जाम= नतीजा; सनक= जुनून)



अंतरा-३.



न  धुआँ, न  आग, न  जलन का  अहसास,  फिर  भी..!


उसे    अंगारों   पर   चलने   का    शौक,   बेशुमार   है ।


दर - दर    की    ठोकरें    खाने   को,  दिल  बेक़रार   है ।




अंतरा- ४.



न   कभी  सुनी  है,  न   कभी  सुनेगा  वो, दीवाना   है  ।


फिर,हर  मासूम दिल की, फ़ितरत  ही  ग़मख़्वार   है..!


दर - दर   की   ठोकरें    खाने   को, दिल  बेक़रार   है ।



(फ़ितरत=  स्वभाव; ग़मख़्वार= सहनशील)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः २२-०८-२०१२. 

2 comments:

  1. वाह! बहुत सुन्दर.
    आपके गीत ने मग्न कर दिया है,दवे जी.

    शुभकामनाएँ.

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