Wednesday, August 29, 2012

चिथड़ेहाल आसरा - बुढ़ापा । (गीत)



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चिथड़ेहाल  आसरा - बुढ़ापा । (गीत)





कब से,  ढूँढ  रहा  है  आसरा, फ़टा-पुराना  मन ।


चिथड़ेहाल  हुआ  जब  से, ये  नया-नवेला  तन ।


(आसरा= छत्रछाया; नया-नवेला= अभूतपूर्व ​)




अंतरा-१.



गिन  कर   पाँव के   छालों  को, बता  सकते  हैं  सभी..!


हुई   होगी   ईहा   कितनी  कि, न  तन  मेरा  ना  मन..!


कब   से,  ढूँढ    रहा    है   आसरा,  फ़टा-पुराना  मन ।


(ईहा= जद्दोजहद, संघर्ष )



अंतरा-२.



जब  कभी  सोचता  हूँ, क्या  पाया, क्या  खोया  मैंने ?


यारों   से    झूठ   कहूँ   कैसे,  न  बदन  रहा  ना  धन ।


कब   से,   ढूँढ    रहा  है   आसरा,  फ़टा-पुराना  मन ।



अंतरा-३.



लगने  लगा  है अच्छा, अलम के  अंचल  में  छिपना ।


जी  भर  के  भिगो  ले  अंचल, न  शूल  है  ना  चुभन ।


कब  से,  ढूँढ    रहा    है   आसरा,  फ़टा-पुराना   मन ।


(अलम= पछतावा; अंचल =दामन,पल्लू)


अंतरा-४.


फिर  रहा  है  मारा -  मारा   और   कह   रहा   ये   मन ।


न  चाल, न  चलन, दे  करीम  एक   नया-नवेला  तन ।


कब    से,  ढूँढ   रहा    है    आसरा,  फ़टा-पुराना   मन ।


(चाल-चलन= आचार-व्यवहार; करीम=  परवरदिगार) 


मार्कण्ड दवे । दिनांकः२९-०८-२०१२.

2 comments:

  1. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सुश्री अनामीकाजी,

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