Friday, May 2, 2014

ढूंढ़ता हूँ । (गीत)

 ढूंढ़ता हूँ । (गीत)



अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 

न  मिले फिर  मैं,  अपने  बहानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 

दिल-ए-सुकून = चैन, क़रार;
 
१.
 
थका-हारा  नज़र  आता, मुहब्बत का  कारवाँ..!
 
अब  राह-ए-उलफ़त  के  निशानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
राह-ए-उलफ़त = दोस्ती का मार्ग;
 
२.
 
बेज़ार   ज़िंदगी से   यूँ ,   दुश्मनी    मोल  कर..!
 
आसूदगी  की    इल्मी,    किताबों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
बेज़ार = असंतुष्ट;  आसूदगी = खुशहाली; इल्म = ज्ञान,कला;
 
३.

दिल थाम के  खड़ा  हूँ, क़यामत की  कतार में..!
 
इक मेहरबाँ  की  खुश्क  निगाहों  में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
क़यामत = विनाश; खुश्क = अरसिक;
 
४.
 
भीतर  के   अंधेरे  को,  चिराग़ों की   है  तलाश..!
 
तभी  इबादत-खानों  की, अज़ानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
अय दिल-ए-सुकून तुझे, ख़जानों में  ढूंढ़ता  हूँ ।
 
अजान = बाँग

मार्कण्ड दवे ।
 
दिनांकः ०२-०५-२०१४.


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